Monday, December 1, 2008

प्रसून जोशी की कविता "इस बार नही" !!!



प्रस्तुत है प्रसून जोशी(CEO, McCann Ericsson,Lyrics writer) की मुंबई बम धमाको को लेकर बुनी गई नई कविता , ये कविता हमारे दर्द को तो बयां करती ही है और साथ ही सरकार पे और हम पे चोट करती है कि अब कुछ कड़े फैसले लेने का वक्त आ गया है .....


इस बार नहीं

इस बार जब वो छोटी सी बच्ची मेरे पास अपनी खरोंच ले कर आएगी
मैं उसे फू फू कर नहीं बहलाऊँगा
पनपने दूँगा उसकी टीस को
इस बार नहीं

इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखा देखूँगा
नहीं गाऊंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूँगा ,उतरने दूँगा अन्दर गहरे
इस बार नहीं

इस बार मैं न मरहम लगाऊँगा
न ही उठाऊँगा रुई के फाहे
और न ही कहूँगा की तुम आँखें बंद करलो ,गर्दन उधर कर लो मैं दावा लगता हूँ
देखने दूँगा सबको हम सबको खुले नंगे घाव
इस बार नहीं

इस बार जब उलझने देखूँगा ,छटपटाहट देखूँगा
नहीं दौडूंगा उलझी ड़ोर लपेटने
उलझने दूँगा जब तक उलझ सके
इस बार नहीं

इस बार कर्म का हवाला दे कर नहीं उठाऊँगा औजार
नहीं करूंगा फिर से एक नयी शुरुआत
नहीं बनूँगा मिसाल एक कर्मयोगी की
नहीं आने दूँगा ज़िन्दगी को आसानी से पटरी पर
उतारने दूँगा उसे कीचड मैं ,टेढे मेढे रास्तों पे
नहीं सूखने दूँगा दीवारों पर लगा खून
हल्का नहीं पड़ने दूँगा उसका रंग
इस बार नहीं बनने दूँगा उसे इतना लाचार
कि पान की पीक और खून का फर्क ही ख़त्म हो जाए
इस बार नहीं

इस बार घावों को देखना है
गौर से
थोड़ा लंबे वक्त तक
कुछ फैसले
और उसके बाद हौसले
कहीं तोह शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है

... प्रसून जोशी
Courtesy – http://www.rediff.com/news/2008/dec/01mumterror-is-baar-nahin.htm

Posted by -Divya Prakash Dubey
dpd111@gmail.com

1 comment:

  1. aj k mumbai k halaat k liye PRASOON ji ye kavita bilkul sahi hai. kab tak hum bas kch karne k bare me sochte rhenge aur kahange. awaaz se 1 kadam age badhkar hume age ana hi hoga.

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