पिछली बार कई टिप्पणियां पढ़के लगा जैसे हमने एक सोच को जन्म तो दिया है पर वो सोच तब तक एक ज्वलंत विचारधारा का रूप नहीं ले सकती जब तक की हम ये साफ़ न कर दें की आख़िर बकर है क्या. तो इसी विषय में आज कुछ प्रकाश डालने की चेष्टा कर रहा हूँ.ज्यादातर लोग बकर को टाइम पास का एक साधन मात्र समझते हैं पर ये पूर्णतया सच नहीं है. हाँ बकर से टाइम पास होता है पर सिर्फ़ टाइम पास ही इसका उद्देश्य नहीं. बकर एक सोच है, एक विचारधारा जिसका जन्म तो न जाने कब ही हो गया था. आज तो हमने बस इसे एक ढांचा और नाम देने की कोशिश की है. बकर एक ऐसा शंख-रुपी सिद्धांत है जिसके जितना अन्दर जाते रहेंगे उतना ही रहस्य और पेचीदा पर सुखदायी होता रहेगा. अंग्रेज़ी में अगर कहें तो बकर एक 'स्कूल ऑफ़ थॉट' है. आपने कॉलेज के छात्रों को निहायत ही फालतू बातों पर बात करते देखा होगा जैसे 'क्लास के प्रोफ़ेसर का पाजामा', 'हम तुम और रम', 'पास वाली आंटी की भौहें' आदि. ये बकर है. ये बातें भले ही पहली नज़र में फालतू लगी हों पर ये सोचिये की ऐसे दुर्लभ विषयों पर चर्चा करना क्या हर किसी के बस की बात है? चर्चा तो छोडिये क्या ऐसे विषयों को सोच भी पाना हर आदमी के बस में है? बकर फालतू नहीं. बकर वो मंच है जहाँ दुनिया भर के लोग अपने आप से रु-ब-रु होते हैं. अपने अन्दर के उस कलाकार को पहचानते हैं जो दैनिक जीवन की उलझनों में शर्मा के बैठा है. बकर रोज़मरा के जीवन के उन नायकों की गाथा बयान करती है जो ना तो जीना छोड़ते हैं और ना ही जनता के बीच बैठ कर उपयुक्त मौका न मिल पाने का रोना रोते हैं. ध्यान रहे की बकर कोई विधि या तकनीक नहीं है. बकर एक बहाव है जो दो आदमियों के अंतर्मन को परस्पर लाने की क्षमता रखता है. आज बकर के प्रभाव में रहने से कितने ही लोग अपने जीवन को एक नई रौशनी में देख पा रहे हैं. वे लोग जो अपने 'बौस' से परेशान हैं, जिन्हें किसी वजह से रात में नींद नहीं आती, जो अपनी बीवी के सामने अपने शब्द नहीं रख पाते, जो कविता रचते हैं पर किसी को सुना नहीं पाते. फिर भी ये लोग जब शाम को जब टहलने निकलते हैं तो किसी नुक्कड़ या दूकान पे मिल जाते हैं. ध्यान से सुनियेगा तो आप जान पायेंगे की इनकी बातों के विषय कितने अछूते हैं, कितने मार्मिक और फिर भी कितने हास्य हैं. ये बकर है.
'बकर क्या है जानने के लिए,
बकर कर पाना बहुत ज़रूरी है
आज तक किसी ने की तो नहीं'
(गुलज़ार की एक त्रिवेणी से प्रेरित)
अब तक प्रयत्नरत
आभार
इतना गहन विचारों का संग्रह इन्टरनेट पे ढूँढना मुश्किल ही नही नामुमकिन है | आभार आपको बहुत बहुत साधुवाद!!
ReplyDeleteआपने इस तरह की चर्चा शुरू करके न केवल मानवजाति की प्रगति की दिशा में सोचा है बल्कि ये भी बता दिया है की हिन्दी ब्लोगिंग निश्चय ही समर्थ और सशक्त तरह से अपने निशान दुनिया में बनाए को आतुर है |
उम्मीद है इस पोस्ट को पढने के बाद लोग बकर के मर्म को समझ पाने की दिशा में जरुर अग्रसर होंगे !!
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
Dhanyawad,
ReplyDeleteAaj is blog ko padne ke baad meri zindagi ko naya mode mila hai. Main aaj tak apne andar ke kalakar ko pehchaan hi nahin paya. Main aaj tak isi heenbhawna mein apna jeevan vayateet karta reha hai ke jo mujhe aata hai wo to sirf waqt katne ka ek jariya hai.
Magar aap ke in vicharon ne mere andar ke bakarch** ko fir se ek nayi zindagi di hai. Main aap ka bahut aabhari hoon.
Bakar ka globalisation karne ka shreya kuch din baad humare abhinn mitron Divya prakash aur aabhar ko hee jayega, halanki bakar saare vishwa main prachalit hai lekin abhi tak uska is tarah se vistrat varnan milna bahut hee mushkil hai.is tarah se hum aane waali peedhiyon ko shuroo se hee bakar main kushal banane ka kaam kar sakenge aur bharat desh ka naam is khsetra main swarna achcharon main likha jayega..
ReplyDeleteinhi ummeedon ke saath..
apka apna
Prince
बकर - ये शब्द ही अपने में समूची दुनिया एक बार में समेत लेता है! यह कहना तो सही नही होगा की ये शब्द की व्याख्या भारतीये संस्कृति के इतिहास में बहुत पहले से मौजूद है, हाँ लेकिन इसकी लोकप्रियता नव भारत में एक नई उचाईयों को छू रही है! आदमी का शराब पीना छुट सकता है, ज़र्दा-पान छुट सकता है लेकिन एक बार जो व्यक्ति बकर करने लगे तो ना जाने कितना समझा बुझा लीजिये, कितना रोक लें आप उनक लेकिन जहाँ वो अपनी चिर-परिचित मित्र मण्डली के बीच में चले गए शायद परमेश्वर भी उनको बकर करने से नही रोक सकता. दुनिया भर में विज्ञान ने ऐसा कीर्तिमान स्थापित कर दिया है जो बहुत ही सर्हानिये है लेकिन मैं पूरे यकीं के साथ कहूँगा की आज भी एक विषय ऐसा है जिसके ऊपर हमारे विज्ञानिकों की शोध अभी भी बाकी है! मैं नाम नही लूँगा क्यूंकि शायाद आप लोग मेरे इशारे को समझ रहे होंगे. जी हाँ में एक शब्द नही बल्कि एक चेतना की बात कर रहा हूँ जो हम सब में कहीं न कहीं छुपी हुई है बस उसे जागरूक करने के लिए हमें अपने विचारों को एक रेखा के भीतर समेत के नही रखना है और भरपूर प्रयास करना है की अपने व्यस्त जीवन में से कुछ मूल्यवान समय अपने ख़ास मित्रों के साथ बिताना है! यह बहुत ही आजमाया हुआ फार्मूला है और आप कुछ ही दिनों में अपने आप अन्दर फरक देखने लगेंगे! एक नए आत्मविश्वास आपके कण कण में महसूस होने लगेगा और कुछ ही महीनो में आपको ये ज्ञान हो जायेगा की बकर से आपके जीवन को एक नया दृष्टिकोण मिल गया है, अब आप अपने भीटर छुपे सकारात्मक उर्जा के अनंत सागर से रूबरू होने लगेंगे और फ़िर बस बकर करना आपके रोज़ मर्रा में विलय हो जायेया और शायद कुछ ही वर्ष ऐसे ही दिनचर्या व्यतीत करते करते आपको परम बोध होगा जब एक दिन ये समझ लेंगे की आपको बकर करने के लिए शब्दों की ज़रूरत है आवाज़ की नही, समय की ज़रूरत है साथ की नही ! आज शायद मैंने भी पहली बार अकेले बैठे हु इतना कुछ लिखने के बाद यह परम्बोद पा लिया है ! दुबे जी का मैं बहुत आभार हूँ !
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